Thursday, June 07, 2012

लिखता हूँ खत खून से

लिखता हूँ खत खून से, स्याही मत समझना,
दारोगा हूँ मैं तेरे थाने का, सिपाही मत समझना,

यधपि तेरे संग चलते -चलते पीटा हूँ कई बार ,
आरजू हैं कि मुझको हमराही ही समझना , 
लिखता हूँ खत खून से......

तेरे छेड़खानी के केस का मुदई मैं ही था,
भूल से भी कभी मुझे तुम; गबाही मत समझना ,
लिखता हूँ खत खून से ..... 

कारागार की दीवारें भी, आज कागज बन गयी हैं,
इतवार करो इस पागल का,कोरी कहानी मत समझना,
लिखता हूँ खत खून से.........

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