Wednesday, March 07, 2012

One more

हर पप्पू चाहता है कि वो सुने,  
अपनी बंशी की धून पे महुआ का मल्हार,
चाहकर भी वो क्या करे? जब मुक्कदर में हो,
ताड़ी के नशे में घूँघरू की झंकार, 

Sunday, March 04, 2012

कुछ अनायास ख़यालात

छलिये तेरे कायनात में,
क्या कभी किसी को,
मिला कभी भी सब है ?

तृष्णा के वश ना पड़ बन्दे,
कस्तूरी मिला मृग को कब है ?
आँखे पसार, खुद को निहार,
वही तुम्हारा सब है |