कभी चलती थी तेरी कि-२,
डरा दिया करते थे आग और पानी से,
अरे कागज का घर मेरा तो आज भी हैं,
बस बन्दा दूर निकल गया हैं, बचपन की नादानी से |
डरा दिया करते थे आग और पानी से,
अरे कागज का घर मेरा तो आज भी हैं,
बस बन्दा दूर निकल गया हैं, बचपन की नादानी से |
2 comments:
Its beautiful...
nic lines bhaiya
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