लिखता हूँ खत खून से, स्याही मत समझना,
दारोगा हूँ मैं तेरे थाने का, सिपाही मत समझना,
यधपि तेरे संग चलते -चलते पीटा हूँ कई बार ,
आरजू हैं कि मुझको हमराही ही समझना ,
लिखता हूँ खत खून से......
तेरे छेड़खानी के केस का मुदई मैं ही था,
भूल से भी कभी मुझे तुम; गबाही मत समझना ,
लिखता हूँ खत खून से .....
कारागार की दीवारें भी, आज कागज बन गयी हैं,
इतवार करो इस पागल का,कोरी कहानी मत समझना,
लिखता हूँ खत खून से.........
दारोगा हूँ मैं तेरे थाने का, सिपाही मत समझना,
यधपि तेरे संग चलते -चलते पीटा हूँ कई बार ,
आरजू हैं कि मुझको हमराही ही समझना ,
लिखता हूँ खत खून से......
तेरे छेड़खानी के केस का मुदई मैं ही था,
भूल से भी कभी मुझे तुम; गबाही मत समझना ,
लिखता हूँ खत खून से .....
कारागार की दीवारें भी, आज कागज बन गयी हैं,
इतवार करो इस पागल का,कोरी कहानी मत समझना,
लिखता हूँ खत खून से.........
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