Sunday, July 12, 2009

कुछ ऐसे ही:

हमें भी मालूम हैं , कल को छोड़ के जो निकला ,
वो
सुबह नई हैं |
आगे जो दिख रहा , सपनो से भरी ,
वो दुनिया नई हैं |
नयापन के नवरंग में डूबा ,
मैं भूल कैसे जाऊ ,सर छुपाने को आज भी ,
कल की धुप में जला ,
मेरा आशियाना वही हैं |